बादलों के घेरे | Badalon Ke Ghere

By: कृष्णा सोबती - krashna Sobati
बादलों के घेरे | Badalon Ke Ghere by


दो शब्द :

यह पाठ कृष्णा सोबती की कहानी "बादलों के घेरे" का एक हिस्सा है, जिसमें लेखक ने अपने अनुभवों और भावनाओं का गहराई से वर्णन किया है। कहानी में एक व्यक्ति पहाड़ों की शांत और सुरम्य प्राकृतिक छटा का आनंद ले रहा है, जहां वह लेटकर आसमान में बादलों के घेरों को देखता है। वह अपने अंदर की गहराइयों में जाकर अपने अतीत के सुखद क्षणों को याद करता है, जिसमें प्रेम, घर, और परिवार की खुशियों की महक है। व्यक्ति अपने सपनों में खोया रहता है, जहां उसे एक घरेलू माहौल का अनुभव होता है। वह अपनी पत्नी की देखभाल और उसकी देखभाल करने की जिम्मेदारियों का विचार करता है। लेकिन समय बीतने के साथ ही वह महसूस करता है कि उसके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ कमी है। उसे अपने जीवन में एक गहरी तन्हाई और शून्यता का अनुभव होता है। कहानी में प्रेम की विभिन्न परतों को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें एक ओर घरेलू प्रेम और दायित्व हैं, वहीं दूसरी ओर एक और गहरा और जटिल प्रेम है जो व्यक्ति को अपनी यादों में ले जाता है। अंततः, यह कहानी जीवन की सरलता और जटिलता दोनों को दर्शाती है, जहां व्यक्ति अपने अंदर के भावनात्मक द्वंद्व का सामना करता है। कहानी में लेखक ने बहुत ही संवेदनशीलता से प्रेम, यादों, और जीवन की उलझनों को चित्रित किया है, जो पाठक को अपनी ओर खींचती है और सोचने पर मजबूर करती है।


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