हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग | Hindi ke Vikas Mein Apabhransh ka Yog

By: नामवर सिंह - Namvar Singh
हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग | Hindi ke Vikas Mein Apabhransh ka Yog by


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश हिंदी के विकास और अपभ्रंश भाषा के संबंध में है। नामवर सिंह द्वारा लिखित यह पुस्तक हिंदी भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान को विस्तार से बताती है। पुस्तक का प्रारंभिक रूप 1651 में एक निबंध के रूप में काशी विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया गया था, और इसे 1652 में प्रकाशित किया गया था। इसके द्वितीय संस्करण में पुस्तक में कई संशोधन और नई सामग्री जोड़ी गई है, जिसमें अपभ्रंश और हिंदी वाक्य-विन्यास का तुलनात्मक विवेचन, अपभ्रंश के विशिष्ट तत्त्वों और शब्दों की सूची, तथा अपभ्रंश के प्रमुख कवियों और काव्यों की समीक्षा शामिल है। पुस्तक में अपभ्रंश भाषा के अध्ययन के महत्व पर जोर दिया गया है, क्योंकि यह आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास को समझने में सहायक है। अपभ्रंश को एक ग्राकृत भाषा के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसकी विशेषताएँ विभिन्न व्याकरणिक शोधों में निर्धारित की गई हैं। इस अध्ययन के माध्यम से लेखक ने यह भी बताया है कि प्राचीन भाषाओं का अप्रचलित होना और नए रूपों का निर्माण एक निरंतर प्रक्रिया है, जो आज भी जारी है। इस प्रकार, यह पाठ हिंदी के विकास में अपभ्रंश की भूमिका को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी है।


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