लोक साहित्य | Lok Sahitya

- श्रेणी: साहित्य / Literature
- लेखक: सुरेशचन्द्र त्यागी - Suresh Chandra Tyagi
- पृष्ठ : 323
- साइज: 15 MB
- वर्ष: 1983
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दो शब्द :
इस पाठ में लोक-साहित्य के महत्व, उसकी परिभाषा और अध्ययन की आवश्यकता पर चर्चा की गई है। लोक-साहित्य को फोकलोर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है, जिसमें लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोक-ताद्य और लोकोक्ति शामिल हैं। इस अध्ययन का आरंभ यूरोप में 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ, और इसे 'फोकलोर' नाम दिया गया, जो असंस्कृत लोगों के ज्ञान को दर्शाता है। पाठ में यह भी बताया गया है कि लोक-साहित्य को अक्सर अशिष्ट और असभ्य समझा जाता है, लेकिन यह जीवन की सहज गति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके संरक्षण की ज़िम्मेदारी समाज पर है। औद्योगीकरण और नगरीकरण के कारण लोक-साहित्य में कमी आई है, लेकिन फिर भी इसमें बहुत कुछ है जिसे संकलित करना आवश्यक है। लेख में डॉ. कुर्प्णचंद्र शर्मा का उल्लेख किया गया है, जिन्होंने लोक-साहित्य के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कार्यों में लोकगीतों और लोककथाओं का संकलन शामिल है। उन्होंने लोक-साहित्य के अंतर्गत विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और इसे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल कराया। इस प्रकार, लोक-साहित्य के अध्ययन के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसके संरक्षण के महत्व को उजागर किया गया है, साथ ही इसमें डॉ. शर्मा जैसे विद्वानों के योगदान को भी सराहा गया है।
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