योग दर्शनम | Yoga Darshanam

- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy योग / Yoga
- लेखक: ठाकुरप्रसाद शर्मा - Thakurprasad Sharma
- पृष्ठ : 238
- साइज: 4 MB
- वर्ष: 1955
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दो शब्द :
इस पाठ में सृष्टि और योग के संबंध में गहन विचार प्रस्तुत किया गया है। सभी जीवों में एक अद्वितीय चेतना है जो परमात्मा से जुड़ी हुई है। पाठ में बताया गया है कि सृष्टि केवल भगवान की इच्छा से उत्पन्न होती है और यह सृष्टि भौतिक तत्वों से मिलकर बनती है। सृष्टि का आरम्भ विभिन्न तत्वों के माध्यम से होता है, जैसे आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, जो मिलकर संपूर्ण संसार का निर्माण करते हैं। इन पांच तत्वों से मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार जैसी सूक्ष्म वस्तुओं का निर्माण होता है। जीव अपने अहंकार के कारण स्वयं को स्वतंत्र समझने लगता है, जबकि वास्तव में वह परमात्मा से भिन्न नहीं है। योग का उद्देश्य इस भिन्नता को मिटाना है, ताकि जीवात्मा पुनः परमात्मा से जुड़ सके। पाठ में विभिन्न योग साधनों का उल्लेख किया गया है, जैसे मंत्रयोग, हठयोग, लययोग और राजयोग, जो जीव को मोक्ष की ओर ले जाने के लिए मदद करते हैं। अंततः, यह पाठ हमें यह समझाता है कि सृष्टि और लय की प्रक्रिया में अंतःकरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, और योग साधनों के माध्यम से हम अपने अंतःकरण को शुद्ध कर सकते हैं, जिससे हम मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
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