दो शब्द :

यह पाठ भगवान महावीर की पच्चीस-सौवीं निर्वाण तिथि समारोह के संदर्भ में लिखा गया है। इसमें लेखक ने महावीर की महानता और उनके जीवन के गुणों का वर्णन किया है। यह ग्रंथ मुख्य रूप से 'कल्पसूत्र' पर आधारित है, जो एक महत्वपूर्ण जैन ग्रंथ है। लेखक ने बताया है कि यह ग्रंथ हिंदी साहित्य में एक नया योगदान है और इसे समझने के लिए इसे विभिन्न प्रामाणिक स्रोतों से प्रमाणित किया गया है। इसमें विद्वान और विचारक श्री देवेन्द्र मुनि द्वारा जैन आचारों और सिद्धांतों की स्पष्टता प्रस्तुत की गई है। पाठ में श्री पुष्कर मुनि जी के मार्गदर्शन की भी चर्चा की गई है, जो एक प्रसिद्ध वक्‍ता और गंभीर तत्त्व चिंतक हैं। वे इस ग्रंथ के सम्पादक और लेखक के शिष्य रहे हैं। इसके अलावा, पाठ में सिवाना गढ़ और वहां के रांका और बागरेचा परिवारों का उल्लेख है, जिन्होंने धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन परिवारों के सदस्यों ने जैन धर्म की सेवा में अपनी जीवनचर्या बिताई है और कई ने दीक्षा ग्रहण की है। कुल मिलाकर, यह पाठ महावीर के जीवन और उनके सिद्धांतों की महत्ता को उजागर करता है, साथ ही जैन धर्म के प्रति श्रद्धा और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को महत्व देता है।


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