पाणिनिकलिन भारतवर्ष | Paninikalin Bharatvarsh

- श्रेणी: इतिहास / History दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy
- लेखक: वासुदेव सरना अग्रवाल - Vasudeva Sarana Agrawala
- पृष्ठ : 576
- साइज: 27 MB
- वर्ष: 1960
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दो शब्द :
यह पाठ "पाणिनिकालीन भारतवर्ष" पर आधारित है, जिसमें पाणिनि द्वारा रचित "आष्टाध्यायी" का सांस्कृतिक अध्ययन किया गया है। आष्टाध्यायी में चार हजार से अधिक सूत्र शामिल हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य व्याकरण के नियमों को समझाना है। पाणिनि ने अपनी कृति में उस युग के सांस्कृतिक जीवन का जीवंत चित्रण किया है, जिसमें उन्होंने मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं—जैसे भूगोल, सामाजिक जीवन, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, राजनीति और धार्मिकता—का विश्लेषण किया है। पाणिनि का कार्य भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और उनके सूत्रों का अध्ययन प्राचीन भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को समझने में सहायक है। पाठ में उल्लेखित है कि पाणिनि ने भाषा के विभिन्न प्रयोगों का गहन अध्ययन किया, जिससे उन्होंने व्याकरण की एक प्रणाली विकसित की, जिसे उन्होंने "भाष्य आचार्य" कहा। इस अध्ययन में पाणिनि के सूत्रों के अर्थों का विवेचन किया गया है और यह बताया गया है कि पाणिनि की सामग्री को प्रामाणिक समझा जाना चाहिए, जैसे कि शिलालेख और मुद्राएँ। पाठ में आगे यह भी वर्णित है कि पाणिनि के अध्ययन से प्राप्त जानकारी का उपयोग कर विभिन्न विषयों पर नए दृष्टिकोण विकसित किए जा सकते हैं। इसके अलावा, पाठ में पाणिनि द्वारा विभिन्न प्रकार के अन्न और भोजन के उल्लेखों का भी विवरण है, जिसमें धान्य, दालें और अन्य खाद्य पदार्थों का उल्लेख किया गया है। पाणिनि ने भारतीय खाद्य संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को भी अपने सूत्रों में समाहित किया है, जो उनके समय की सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को दर्शाता है। इस प्रकार, पाठ पाणिनि के कार्यों और उनके समय की संस्कृति का एक समग्र चित्र प्रस्तुत करता है, जो भारतीय व्याकरण और संस्कृति के अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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