भगवन है की नहीं | Bhagwan Hai Ki Nahi

By: कर्त्तार सिंह दुग्गल - Kartar Singh Duggal


दो शब्द :

इस कहानी में सुरेन्द्र बहन के जीवन का वर्णन किया गया है, जो एक खुशहाल परिवार में जन्मी थी। उसके पिता एक डाक्टर थे और उसका विवाह एक चौधरी के बेटे से हुआ। विवाह के बाद सुरेन्द्र बहन का जीवन खुशियों से भरा था और उसने तीन बेटों को जन्म दिया। लेकिन अचानक उसके पति की मृत्यु हो जाती है, जिससे उसका जीवन बिखर जाता है। विधवा होते ही उसके परिवार में उसकी स्थिति बिगड़ जाती है और लोग उससे दूर होने लगते हैं। सुरेन्द्र बहन को अपने बच्चों की परवरिश के लिए नौकरी की तलाश करनी पड़ती है। उसे एक ठेकेदार से काम मिलता है, जो उसे पसंद करने लगता है। कुछ समय बाद वह ठेकेदार उसके प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करता है, और सुरेन्द्र बहन एक बार फिर खुशहाल जीवन जीने लगती है। लेकिन उसका यह सुख ज्यादा समय तक नहीं टिकता। ठेकेदार उसे छोड़कर उसकी मौसी की बेटी से विवाह कर लेता है, जिससे सुरेन्द्र बहन का जीवन फिर से दुख और निराशा में डूब जाता है। कहानी में सुरेन्द्र बहन की मनोदशा, उसकी आंतरिक लड़ाई, और उसके दुखद जीवन के उतार-चढ़ाव को चित्रित किया गया है। यह कहानी यह दर्शाती है कि जीवन में सुख और दुख दोनों ही क्षणिक होते हैं, और किस प्रकार एक व्यक्ति अपनी परिस्थितियों का सामना करता है। सुरेन्द्र बहन का जीवन एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो जीवन के विभिन्न रंगों का अनुभव करती है, लेकिन अंततः उसे अपने जीवन में फिर से स्थिरता की तलाश करनी पड़ती है।


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