भारतीय शिक्षा | Bhartiya Shiksha:

By: प्यारे लाल रावत - Pyare Lal Rawat
भारतीय शिक्षा  | Bhartiya Shiksha: by


दो शब्द :

इस पाठ में प्राचीन भारतीय शिक्षा की विशेषताओं और उसके विकास पर चर्चा की गई है। लेखक ने यह बताया है कि भारतीय संस्कृति में धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थान था, और शिक्षा का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति था। प्राचीन भारत में शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम नहीं थी, बल्कि यह आध्यात्मिक विकास का भी एक साधन था। लेखक ने उल्लेख किया है कि प्राचीन भारतीय शिक्षा में विद्यार्थी अपने गुरु के पास रहकर जीवन की समस्याओं पर चर्चा करते थे और समाज के वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करते थे। शिक्षा का यह स्वरूप केवल सैद्धांतिक नहीं था, बल्कि इसमें व्यावहारिक ज्ञान का भी समावेश था। विद्यार्थी अपने गुरु की सेवा करते थे और इस प्रक्रिया में अनुशासन, श्रम और सेवा का महत्व सीखा जाता था। इसके अलावा, लेखक ने बताया कि प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में भिक्षाटन जैसी प्रथाएँ भी थीं, जो विद्यार्थी को समाज के प्रति कृतज्ञता और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाती थीं। यह शिक्षा प्रणाली जीवन की वास्तविकताओं से जुड़ी थी और इसमें विद्यार्थियों को सामाजिक संपर्क का अनुभव मिलता था। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय शिक्षा का विकास एक सुनियोजित प्रक्रिया थी, जो समाज के भीतर जड़ें जमाए हुए थी। प्राचीन भारतीय ऋषियों ने शिक्षा को एक ऐसा माध्यम बनाया, जिससे लौकिक और पारलौकिक ज्ञान का समन्वय हो सके। अंत में, ऋग्वेद का उल्लेख करते हुए लेखक ने कहा कि यह भारतीय संस्कृति का आधार है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान निहित है। इस प्रकार, पाठ में प्राचीन भारतीय शिक्षा की गहराई, उसके उद्देश्य और सामाजिक संबंधों को उजागर किया गया है।


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