भारत की लूट एवं बदनामी | Bharat Ki Loot Evam Badnami

- श्रेणी: Freedom and Politics | आज़ादी और राजनीति इतिहास / History
- लेखक: धर्मपाल - Dharmpal
- पृष्ठ : 152
- साइज: 7 MB
- वर्ष: 1663
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दो शब्द :
धर्मपाल का लेखन "भारत की लूट एवं बदनामी" भारतीय इतिहास और संस्कृति के संदर्भ में ब्रिटिश उपनिवेशीकरण के प्रभावों को उजागर करता है। लेखक ने अपने अनुभवों और विचारों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि किस प्रकार 14वीं शताब्दी से अंग्रेजों ने भारत की संसाधनों का दोहन किया और भारतीय संस्कृति को बदनाम किया। लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भागीदारी की चर्चा की है, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1942 के "भारत छोड़ो आंदोलन" में भाग लिया। उन्होंने उस समय की राजनीतिक हलचल और समाज में हो रहे बदलावों का जिक्र किया है। धर्मपाल ने विभिन्न सामाजिक कार्यों में भागीदारी की, जैसे कि शरणार्थियों के पुनर्वास और गाँवों के विकास में सहयोग। उन्होंने भारतीय समाज की जड़ों को समझने और उसकी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए गाँवों में रहने का प्रयास किया। साथ ही, उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान लिखे गए दस्तावेजों का अध्ययन किया, जिससे उन्हें यह समझने में मदद मिली कि अंग्रेजों ने भारत में क्या किया और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ा। उनके अध्ययन के परिणामस्वरूप, भारतीय विज्ञान और तकनीकी विकास पर आधारित पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जो उस समय की उपनिवेशी मानसिकता को चुनौती देती हैं। धर्मपाल का यह लेखन न केवल भारत के इतिहास को समझने का प्रयास है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और समाज में गहरी जड़ों को पुनः स्थापित करने का भी एक प्रयास है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से यह संदेश दिया कि भारतीयों को अपनी पहचान और इतिहास को जानने की आवश्यकता है, ताकि वे अपने भविष्य को संवार सकें।
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