महाकाल | Mahakal

By: अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar
महाकाल | Mahakal by


दो शब्द :

महाकाल में साम्प्रदायिकता और राजनीतिक दांव-पेंचों के पीछे छिपी पेट की समस्या को उजागर किया गया है। लेखक का मानना है कि आज की अशांति का मूल कारण व्यक्ति के स्वार्थ हैं, जो समाज की समस्याओं पर पर्दा डालते हैं। यह अशांति, भूख, निराशा, और अमानुषिकता का परिणाम है, जबकि मानवता की शक्ति और बुद्धि का उपयोग विनाश के लिए किया जा रहा है। कहानी की पृष्ठभूमि में, भूख और अकाल का संकट है, जो लोगों को मजबूर कर देता है। उपन्यास का आरंभ एक स्कूल के मास्टर, पाचू गोपाल मुखर्जी, की चिंता से होता है। वह अपने शिष्य गणेंदा की मृत्यु से दुखी है और सोचता है कि कैसे समाज की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। पाचू के विचारों में अपने कर्तव्य और भविष्य की चिंता है। वह अपने विद्यार्थियों और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को महसूस करता है। कहानी में यह दिखाया गया है कि कैसे भूख और अकाल ने लोगों को दयालुता से दूर कर दिया है और उन्हें स्वार्थी बना दिया है। पाचू की सोच में यह सवाल उठता है कि क्या स्कूल बंद हो जाएगा और यह उसके लिए एक बड़ा संकट है। इस प्रकार, यह रचना न केवल मानवीय संकटों को उजागर करती है, बल्कि समाज की अनदेखी समस्याओं की तरफ भी ध्यान आकर्षित करती है।


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