संगीत प्रवेश | Sangeet Pravesh

By: पं भीमराव शास्त्री - Pt. Bheemrav Shastri
संगीत प्रवेश  | Sangeet Pravesh by


दो शब्द :

इस पाठ में संगीत की महत्ता और उसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। संगीत को एक universally प्रिय विधा माना गया है, जिसमें गाना, बजाना और नृत्य तीनों शामिल होते हैं। संगीत की दो प्रमुख प्रणालियाँ हैं: दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय, जिन्हें क्रमशः कर्नाटकी और हिंदुस्थानी संगीत कहा जाता है। पाठ में बताया गया है कि संगीत के लिए नाद (ध्वनि) महत्वपूर्ण है, और नाद के दो प्रकार होते हैं—व्यक्त और अव्यक्त। व्यक्त नाद में अनुरणन हो सकता है, जैसे कि वाद्ययंत्र, जबकि अव्यक्त नाद में ऐसा नहीं होता। स्वर के दो प्रकार होते हैं: प्रकृत (शुद्ध) और विकृत (कोमल या तीव्र)। संगीत में राग का महत्व भी बताया गया है। राग को स्वर समूह के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें आरोह, अवरोह, और स्थायी तत्व शामिल होते हैं। रागों के वर्गीकरण में ओडब, पाडब और संपूर्ण राग शामिल हैं, जो स्वर की संख्या पर निर्भर करते हैं। ताल का भी संगीत में महत्वपूर्ण स्थान है, जो गाने की लय और गति को निर्धारित करता है। इसमें विभिन्न प्रकार की तालें जैसे ध्रुव, मख्य, दादरा आदि का उल्लेख किया गया है। अंत में, संगीत को एक कला के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें गायक, वादक और नर्तक सभी अपने-अपने तरीके से भावनाओं का अभिव्यक्त करते हैं। संगीत का विकास और संरक्षण महत्वपूर्ण है, और इसे विभिन्न संस्कृतियों में फैलाने की आवश्यकता है।


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