रास गंगाधर | Rasa Gangadhar

By: अज्ञात - Unknown


दो शब्द :

यह पाठ "रसगंगाधर" नामक ग्रंथ की समीक्षा पर आधारित है, जिसमें काव्य की परिभाषा, लक्षण, और रस की मीमांसा का विवेचन किया गया है। पण्डितराज ने काव्य का मुख्य लक्षण "रमणीयार्थ-प्रतिपादक शब्द" के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसका अर्थ है कि जो शब्द रमणीयता का बोध कराते हैं, वही काव्य हैं। उन्होंने काव्य को तीन प्रकार से परिभाषित किया है: चमत्कार को उत्पन्न करने वाला शब्द, भावना का विषय, और विशेषण के साथ विशेषता। रसगंगाधर में रस की विभिन्न परिभाषाएँ और भेदों का उल्लेख है, जैसे स्थायी भाव, रस की संख्या, और रस के विभिन्न प्रकार। पण्डितराज ने काव्य में गुण और दोषों पर भी विचार किया है। इस लेख में उन सभी विषयों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है। इस समीक्षा में पण्डितराज के विचारों का खंडन या समर्थन करते हुए उनके तर्कों का सारांश दिया गया है। यह बताया गया है कि कैसे विभिन्न ग्रंथों और विचारधाराओं को एकत्रित करके एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा, इस समीक्षा में पाठ के विभिन्न अध्यायों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें काव्य की परिभाषा, रस की व्याख्या, गुण और दोष, और शैली पर चर्चा की गई है। अंत में, समीक्षा में परिशिष्ट और सहायक सामग्री का भी समावेश किया गया है, जिससे पाठक को काव्य और रस के अध्ययन में अधिक गहराई से समझने में सहायता मिलेगी।


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