सिद्ध- साहित्य | Siddha- Sahitya

By: धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati
सिद्ध- साहित्य | Siddha- Sahitya by


दो शब्द :

इस पाठ में सिद्ध-साहित्य के अध्ययन का इतिहास और इसकी विशेषताएँ प्रस्तुत की गई हैं। सिद्ध-साहित्य की शुरुआत 1607 में म. हरप्रसाद शास्त्री की नेपाल यात्रा से होती है, जब उन्हें कुछ अपभ्रंश दोहे और चर्यापद मिले। ये रचनाएँ बौद्ध तंत्रों के आधार पर योग-साधना की पद्धतियों का वर्णन करती हैं और चोंरासी सिद्धों की परंपरा में आती हैं। सिद्ध-साहित्य की ओर विद्वानों का ध्यान धीरे-धीरे बढ़ा, विशेषकर हिंदी में राहुल सांकृत्यायन और डॉ. काशीग्रसाद जायसवाल के प्रयासों के कारण। हालाँकि, इस साहित्य के सिद्धांत और काव्य पक्ष को उपेक्षित रखा गया। पाठ में सिद्धों के सिद्धांतों और साधना पद्धतियों का संक्षिप्त विवेचन किया गया है। इसके साथ ही, महायान बौद्ध धर्म और तंत्र साधनाओं के विकास का भी उल्लेख किया गया है। सिद्धों के काव्यशैली और भाषा पर भी चर्चा की गई है, जिसमें उनके काव्य के प्रतीक, उपमान और रूपक का महत्व समझाया गया है। अंत में, पाठ में यह भी बताया गया है कि सिद्धों का साहित्य नाथों और संतों के हिंदी साहित्य पर प्रभाव डालता है। सिद्धों की परंपरा के बाद शैव और वैष्णव सम्प्रदायों का विकास और उनका सन्दर्भ भी प्रस्तुत किया गया है, जिससे सिद्ध-साहित्य का सामाजिक और धार्मिक महत्व स्पष्ट होता है।


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