हिंदी शब्दानुशासन | Hindi Sabdha Nushasan

- श्रेणी: विज्ञान / Science
- लेखक: किशोरीदास वाजपेयी - Kishoridas Vajpayee
- पृष्ठ : 570
- साइज: 12 MB
- वर्ष: 1955
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दो शब्द :
इस पाठ में पं. किशोरीदास वाजपेयी द्वारा हिन्दी भाषा और व्याकरण के महत्व पर चर्चा की गई है। लेखक ने वाजपेयी जी की प्रतिभा और उनके कार्यों की सराहना की है, साथ ही यह भी बताया है कि कैसे उनके विचारों ने हिन्दी व्याकरण को समृद्ध किया। वाजपेयी जी ने हिन्दी को एक स्वतंत्र भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया और संस्कृत के व्याकरण को हिन्दी पर लागू करने के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की। वाजपेयी जी के जीवन और उनके अनुभवों के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि उन्होंने किस प्रकार हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे संस्कृत के विद्वानों के बीच रहते हुए भी हिन्दी की मौलिकता और उसकी विशेषताओं को समझते थे। उनके विचारों ने यह स्पष्ट किया कि हिन्दी अपने नियमों और कानूनों के साथ एक स्वतंत्र भाषा है और इसे संस्कृत के नियमों के अधीन नहीं लाया जा सकता। लेखक ने वाजपेयी जी की कठिनाइयों और संघर्षों को भी उजागर किया है, जो उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में झेले। इसके अलावा, वाजपेयी जी के व्याकरण और साहित्य के विभिन्न विषयों पर उनके ज्ञान और अनुभवों का भी उल्लेख किया गया है। उन्हें एक महत्वपूर्ण विचारक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसने हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने के लिए अपने विचारों और लेखन के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस पाठ में वाजपेयी जी की कृतियों और उनके दृष्टिकोण का मूल्यांकन किया गया है, जो हिन्दी भाषा के प्रति उनके समर्पण और उनकी बौद्धिकता को दर्शाता है।
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