सांख्य तत्त्व मनोरमा | Sankhya Tatva Manorama

By: दीनानाथ पाण्डेय - Dinanath Pandey
सांख्य तत्त्व मनोरमा | Sankhya Tatva Manorama by


दो शब्द :

इब्वरकृष्णकृत सांख्यकारिका एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे डॉ. दीनानाथ पाण्डेय ने 'सांख्य तत्त्व मनोरमा' के रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें सांख्य दर्शन के विभिन्न सिद्धांतों का सम्यक् परीक्षण किया गया है। लेखक ने प्राचीन आचार्यों की मान्यताओं को चुनौती दी है और सांख्य दर्शन की वास्तविकता को स्थापित करने का प्रयास किया है। डॉ. पाण्डेय ने सांख्य दर्शन के प्रमुख सिद्धांतों जैसे प्रकृति-पुरुष का स्वरूप, व्यक्त-अव्यक्त, सत्कायवाद, पुरुष-प्रकृति संयोग, पुनर्जन्म तथा बंधन-मोक्ष के स्वरूप पर विचार किया है। उन्होंने इस ग्रंथ का उद्देश्य विद्वानों के समक्ष सांख्य की वास्तविकता प्रस्तुत करना बताया है। लेखक ने अपने प्रयास में आचार्य माठर और वाचस्पति मिश्र की विचारधाराओं के प्रति सम्मान व्यक्त किया है, लेकिन अपनी स्वतंत्र दृष्टि के साथ असंगतियों को उजागर करने का साहस भी रखा है। इस ग्रंथ के माध्यम से डॉ. पाण्डेय ने भारतीय दर्शन के क्षेत्र में एक नई दृष्टि देने का प्रयास किया है। इस ग्रंथ के प्रकाशन में सहयोग देने वाले सभी विद्वानों, शिक्षाविदों और परिवार के सदस्यों के प्रति लेखक ने आभार व्यक्त किया है। अंत में, उन्हें उम्मीद है कि विद्वत्समाज इस ग्रंथ को सराहेगा और इसे सांख्य दर्शन के अध्ययन में सहायक माना जाएगा।


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