संगीत रत्नाकर - भाग २ | Sangeet Ratnakar - Bhag 2

By: लक्ष्मीनारायण गर्ग - Laxminarayan Garg
संगीत रत्नाकर  - भाग २ | Sangeet Ratnakar - Bhag 2 by


दो शब्द :

इस पाठ में संगीत-रत्नाकर के स्वराध्याय का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। इसमें संगीतज्ञ भातखण्डे के विचार और उनके कार्यों का उल्लेख है। भातखण्डे ने संगीत के प्राचीन ग्रंथों का महत्व समझाते हुए 'रत्नाकर' की उपयोगिता को स्वीकार किया। उनका उद्देश्य संगीत को लिपिबद्ध करना, उसे विद्यालयों के लिए उपयोगी बनाना और प्राचीन ग्रंथों पर अनुसंधान करना था। पाठ में यह भी बताया गया है कि शाज्ज देव, जो 'रत्नाकर' के रचयिता थे, ने दक्षिण भारत में अपने ज्ञान का प्रसार किया। उनके समय में भारत में राजनीतिक उथल-पुथल थी, जिससे विद्वान लोग दक्षिण की ओर चले गए। भातखण्डे ने इस ग्रंथ के माध्यम से संगीत की बिखरी सामग्री को एकत्रित किया और उसे एक सुसंगत रूप दिया। पाठ में यह चर्चा भी की गई है कि कैसे 'रत्नाकर' के महत्त्व को विभिन्न संगीतज्ञों ने स्वीकार किया और उनके काम को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। भातखण्डे का सपना था कि वे प्राचीन ग्रंथों का स्पष्टीकरण करें, ताकि संगीत का वैज्ञानिक इतिहास लिखा जा सके। यह कार्य उन्होंने अपने जीवन में करने का संकल्प लिया। अंत में, पाठ में प्रकाशक की ओर से इस अनुवाद के महत्व और संगीत के क्षेत्र में अनुसंधान के प्रयासों का उल्लेख किया गया है, जो संगीत के प्रति समर्पण और विद्वानों के योगदान को दर्शाता है।


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