पारसी थिएटर: उदभव और विकास | Parasi Theatre : udbhav Aur Vikas

By: सोमनाथ गुप्त - Somnath Gupta
पारसी थिएटर: उदभव और विकास  | Parasi Theatre : udbhav Aur Vikas by


दो शब्द :

इस पाठ में पारसी थियेटर के उद्भव और विकास पर चर्चा की गई है। लेखक, डॉ. सोमनाथ गुप्त, ने अपने अनुभवों और शोध के आधार पर इस विषय पर जानकारी प्रस्तुत की है। उन्होंने उल्लेख किया है कि पारसी रंगमंच का इतिहास और विकास हिंदी नाटक साहित्य में एक अछूता विषय रहा है, जिसमें आवश्यक अध्ययन की कमी है। डॉ. गुप्त ने अपनी पुस्तक में विभिन्न नाटककारों का उल्लेख किया है और उनके योगदान को रेखांकित किया है। उन्होंने यह भी बताया है कि पारसी रंगमंच का विकास विक्टोरिया थियेटर जैसी संस्थाओं के माध्यम से हुआ, जो नाट्य कला को एक सशक्त रूप में प्रस्तुत करने में सहायक थीं। पारसी थियेटर के इतिहास को समझने के लिए उन्होंने विभिन्न स्रोतों, जैसे गुजराती साप्ताहिक पत्रिका 'रास्तगोपतार' और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों का उपयोग किया है। लेखक ने यह भी उल्लेख किया कि पारसी नाटककारों की रचनाएँ और उनके नाटकों का विवरण हिंदी में उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है, ताकि इस क्षेत्र में और अधिक शोध हो सके। इस ग्रंथ का उद्देश्य पारसी थियेटर के महत्व को उजागर करना और इसे हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाना है। डॉ. गुप्त ने सभी संबंधित लेखकों और शोधकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त किया है, जिनकी मदद से उन्होंने यह कार्य किया। अंत में, उन्होंने यह आशा व्यक्त की है कि यह सामग्री हिंदी रंगमंच के अध्येताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।


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