श्री भक्तामर- कथा - कोष | Shree Bhaktmar - Katha- Kosh

- श्रेणी: Magic and Tantra mantra | जादू और तंत्र मंत्र कहानियाँ / Stories धार्मिक / Religious साधना /sadhana
- लेखक: धनंजय - Dhanajay
- पृष्ठ : 144
- साइज: 5 MB
-
-
Share Now:
दो शब्द :
इस पाठ में राजा भोज और संस्कृत के विद्वान कालीदास के बीच की एक महत्वपूर्ण घटना का वर्णन किया गया है। राजा भोज विद्या प्रेमी और गुणग्राहक थे, जिन्होंने संस्कृत का गहरा अध्ययन किया था और अपनी दरबार में महान विद्वानों को आमंत्रित किया था। कालीदास, जो खुद को एक बड़ा विद्वान मानते थे, ने राजा की सभा में एक अन्य विद्वान धनंजय के प्रति अपमानजनक टिप्पणी की। सेठ सुदत्त अपने पुत्र के साथ राजा की सभा में गए और अपने पुत्र के विद्या ज्ञान के बारे में बताया। राजा ने सेठ से उस विद्या के बारे में पूछा जो उनके पुत्र ने सीखी थी, जिस पर धनंजय ने भद्दे तर्क किए और कालीदास को चुनौती दी। कालीदास ने विद्या के महत्व को समझाते हुए धनंजय के ज्ञान को कमतर बताया। धनंजय ने कालीदास को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी, जिसके लिए राजा ने स्वामी मानतुंग को बुलाने का निर्णय लिया। स्वामी ने पहले तो आमंत्रण को अस्वीकार किया, लेकिन अंततः राजा की जिद के कारण उन्हें बुलाया गया। स्वामी ने अपनी विद्या और ज्ञान का प्रदर्शन किया, जिससे राजा और कालीदास दोनों प्रभावित हुए। कहानी का अंत इस बात पर होता है कि राजा ने स्वामी के प्रभाव को समझा और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का अनुसरण करने का निर्णय लिया। राजा भोज ने राज्य में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया, जिससे धर्म की जड़ें मजबूत हुईं। इस प्रकार, पाठ विद्या, ज्ञान और धर्म के महत्व को दर्शाता है।
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.