प्रेम पूर्णिमा | Prem Purnima

By: प्रेमचंद - Premchand
प्रेम पूर्णिमा | Prem Purnima by


दो शब्द :

"प्रेमपरणिमा" कहानी में एक जमींदार पंडित भगेदत्त और उनके मुंशी सत्यनारायण की कहानी है। पंडित भगेदत्त एक ईमानदार और परिश्रमी व्यक्ति हैं, जबकि मुंशी सत्यनारायण उनके विश्वासपात्र और कर्मठ सेवक हैं। पंडित भगेदत्त की अचानक मृत्यु के बाद, मुंशी सत्यनारायण परिजनों की देखभाल का वचन लेते हैं और उनके अधिकारों का सम्मान करते हैं। कहानी में मुंशी सत्यनारायण धीरे-धीरे जमींदारी के कामों में अधिक अधिकार प्राप्त करते हैं और पंडित भगेदत्त के नाम पर खरीदे गए एक गांव की संपत्ति पर कब्जा कर लेते हैं। हालांकि, भानुकु वरी, जो पंडित भगेदत्त की विधवा हैं, को इस बात का आभास होता है कि मुंशी सत्यनारायण उनकी संपत्ति का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। भानुकु वरी मुंशी सत्यनारायण से अपने अधिकारों की मांग करती हैं, जिससे दोनों के बीच विवाद उत्पन्न होता है। भानुकु वरी अपने बच्चों के भविष्य की रक्षा के लिए न्याय की लड़ाई शुरू करती हैं। मुंशी सत्यनारायण के खिलाफ मुकदमा दायर किया जाता है। कहानी में न्याय और अन्याय का संघर्ष है, जिसमें भानुकु वरी अपने बच्चों के लिए न्याय प्राप्त करने के लिए संघर्ष करती हैं, जबकि मुंशी सत्यनारायण अपनी स्वार्थी इच्छाओं के लिए न्याय का दुरुपयोग करते हैं। अंततः, यह कहानी मानवता, नैतिकता और न्याय के महत्व को उजागर करती है।


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