मध्यकालीन काव्य | Madhyakalin Kavya

By: - विनय कुमार - Vinay Kumar
मध्यकालीन काव्य | Madhyakalin  Kavya by


दो शब्द :

इस पाठ में मध्यकालीन काव्य के महत्व और विकास का विश्लेषण किया गया है। लेखक डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव ने हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच के भेद और उनके प्रभावों को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया है कि कैसे हिंदी साहित्य में प्राचीन और नवीन के बीच का अंतर अधिक स्पष्ट है, विशेषकर मध्यकालीन काव्य की विविधता के कारण। मध्यकालीन काव्य की विशेषताएँ जैसे कि भक्ति, ज्ञान, प्रेम और वीरता के तत्वों को प्रमुखता से दर्शाया गया है। इसमें ब्रजभाषा और अवधी का महत्व भी उल्लेखित किया गया है, साथ ही अपभ्रंश और अन्य भाषाओं के योगदान की बात भी की गई है। लेखक का यह भी मानना है कि मध्यकालीन काव्य में आध्यात्मिकता और ऐहिकता का संगम देखने को मिलता है, खासकर राम और कृष्ण की भक्ति में। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे समय-समय पर हिंदी में विभिन्न बोलियों और उपभाषाओं का प्रयोग हुआ, जिससे काव्य की विविधता बढ़ी। इसके अतिरिक्त, 1857 के आसपास हिंदी साहित्य में खड़ी बोली का प्रवेश और उसकी बढ़ती लोकप्रियता पर भी चर्चा की गई है। अंततः, यह पाठ यह दर्शाता है कि मध्यकालीन हिंदी काव्य की विभिन्न धाराएँ और प्रवृत्तियाँ एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा का निर्माण करती हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।


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