हिंदी साहित्यकी भूमिका | Hindi Sahitya ki Bhumika

- श्रेणी: इतिहास / History साहित्य / Literature हिंदी / Hindi
- लेखक: हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi
- पृष्ठ : 306
- साइज: 13 MB
- वर्ष: 1940
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दो शब्द :
इस पाठ में हिन्दी साहित्य के इतिहास और उसकी आलोचना के प्रति एक नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने बताया है कि पिछले 20-30 वर्षों में साहित्य की आलोचना और इतिहास के बारे में लोगों के विचारों में काफी बदलाव आया है। पहले साहित्य और इतिहास को केवल राजे-महाराजों और सेनानियों के नामों और उनके कार्यों के संग्रह के रूप में देखा जाता था। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि साहित्य, समाज, संस्कृति और चिंतन का एक अविच्छिन्न विकास है, जिसमें कई भौगोलिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक कारण शामिल होते हैं। लेखक ने यह भी कहा है कि हिन्दी साहित्य का अध्ययन करते समय केवल पुराने लेखकों और उनकी रचनाओं को संग्रहित करना पर्याप्त नहीं है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने हिन्दी साहित्य को एक नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया है, जिसमें साहित्य का अध्ययन संदर्भित ज्ञान और अंतर्दृष्टि के माध्यम से किया जा सके। पुस्तक में आधुनिक साहित्यिक आलोचना के दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है, और यह उन विद्वानों के प्रयासों को भी मान्यता देती है जिन्होंने पहले हिन्दी साहित्य के इतिहास पर कार्य किया है। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह पुस्तक सिर्फ एक इतिहास नहीं है, बल्कि यह भविष्य में लिखे जाने वाले इतिहासों के लिए मार्गदर्शिका का कार्य करेगी। इस पाठ में लेखक ने विभिन्न विषयों, जैसे बौद्ध धर्म और उसके प्रभाव, हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा, संतों की भक्ति, और भारतीय साहित्य के अन्य पहलुओं पर चर्चा की है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि कैसे साहित्य समाज की आवाज़ है और यह मानवता की प्रगति को समझने में महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, यह पाठ हिन्दी साहित्य के महत्व और उसके अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित करता है, और इसे एक समग्र दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता पर बल देता है।
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