संघर्ष का सत्य | Sangharsh Ka Satya

By: उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk
संघर्ष का सत्य | Sangharsh Ka Satya by


दो शब्द :

यह पाठ उपेन्द्रनाथ अश्क के उपन्यास "गर्म राख" के संशोधित और संक्षिप्त संस्करण के बारे में है। "गर्म राख" एक प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसे न केवल भारतीय भाषाओं में बल्कि अन्य विदेशी भाषाओं में भी अनूदित किया गया है। इसे पढ़ने के बाद, एक हिंदी आलोचक ने सुझाव दिया कि इसका एक छात्रोपयोगी संस्करण तैयार किया जाए, जिसमें अनावश्यक सामग्री को हटाकर आवश्यक पंक्तियों को बनाए रखा जाए। लेखक ने इस कार्य को अपने ही हाथ में लिया, क्योंकि उपन्यास की शैली और उसके विचारों को समझने के लिए यह आवश्यक था कि इसे लेखक स्वयं संक्षिप्त करें। अश्क ने चार महीने तक इस पर काम किया, जिससे उपन्यास का सार और उसका मूल सत्य स्पष्ट हो गया। इस संक्षिप्त संस्करण को कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया और यह अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। पाठ का एक अन्य भाग एक संवाद पर केंद्रित है जिसमें गोपालदास और कवि चातक जैसे पात्रों के बीच एक नई लेखिका के बारे में चर्चा हो रही है। यह चर्चा लाहौर की पत्रिका 'मालती' के संदर्भ में है, जिसमें नयी लेखिकाओं को स्थान दिया जाता है। गोपालदास गर्व से बताते हैं कि यह पत्रिका लड़कियों के बीच बहुत लोकप्रिय है और कवि चातक उस नई लेखिका के चित्र को देखकर प्रेरित होते हैं। अंत में, पाठ में पंडित धर्मदेव वेदालंकार के बारे में जानकारी दी गई है, जो समाज में अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह पाठ साहित्यिक और सामाजिक संदर्भों का एक अच्छा मिश्रण प्रस्तुत करता है, जिसमें लेखन, समाज, और व्यक्ति के बीच के संबंधों पर प्रकाश डाला गया है।


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